प्राचीन भारत में शारीरिक शिक्षा (physical education) के बारे में किसी भी प्रकार की साहित्यिक सामग्री उपलब्ध नहीं है। प्राचीन भारत भी, प्राचीन चीन की तरह धार्मिक और भारतीय संस्कृति, व परम्पराओं के काफी निकट था। इनकी जीवन शैली बहुत ही सरल थी। प्राचीन भारत लगभग 3000 BC तक एक नगरीय सभ्यता के रूप में विकसित हो चुका था जिसका स्पष्ट प्रमाण हमें हड़प्पा तथा मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिलता है। इस काल में बड़े बड़े व्यायामशाला थे जहाँ पर लोग सामूहिक रूप से व्यायाम करते थे तथा स्वयं को स्वस्थ रखते थे, साथ ही बड़े बड़े स्नान गृह थे जहाँ पर नागरिक स्नान किया करते थे। इस काल में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था की गये थी। इस काल नागरिक स्वच्छता के प्रति काफी सजग रहते थे। प्राचीन काल के भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) के इतिहास को हम निम्नलिखित कालखंडों में विभाजित कर सकते हैं –
सिंधु घाटी सभ्यता में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (3250-2500 BC)
पूर्व वैदिक काल के दौरान किसी भी प्रकार की कला या शारीरिक शिक्षा (Physical Education)का कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं है। हड़प्पा एवं मोहन जोदड़ो की खुदाई में प्राप्त युद्ध शास्त्रों, औजारों, उपकरणों, मुहरों, व मूर्तियों के अध्ययन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस काल में शारीरिक क्रिया कलापों का अभ्यास, खेलों व क्रीड़ाओं और मनोरंजन से किया जाता था।
पूर्व वैदिक काल के लोगों का लोकप्रिय मनोरंजन विशेषतः सामुदायिक नृत्य था जिसका प्रमाण मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिली नृत्य मुद्रा में लड़की की कांस्य प्रतिमा से मिलता है। मोहन जोदड़ो में सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण आज के तरणताल जैसा विशाल स्नानागार मिला। यह स्नानागार एक विशाल जलाशय का हिस्सा था जो 60 मीटर लम्बा व 3.6 मीटर चौड़ा था, वास्तविक स्नानागार की लम्बाई 18 मीटर व चौड़ाई 2.5 मीटर थी जो कि इस विशाल जलाशय के मध्य में स्थित थी। इस स्नानागार के चारो तरफ बारामदे स्थित थे। इसके निकट ही बड़ा सा हमाम स्थित था जिसमे ठण्डे व गर्म पानी का फव्वारा व तेल मालिश के लिए अलग से एक कमरा था।
इस काल में संगमरमर के गेंद व पासे खेलों में प्रयुक्त होते थे। इस काल में पासों का खेल बहुत ही लोकप्रिय था जिसका प्रमाण खुदाई के दौरान बहुत अधिक संख्या में पासों का मिलना है। नलाकार व घनाकार दोनों के पासे खुदाई मिले, लेकिन यह अस्पष्ट है कि इन पासों से किन खेलों का उद्भव हुआ, कुछ अधूरे बोर्डों के नमूने खुदाई के दौरान प्राप्त हुए जिन्हे संभवतः पैसों की सहायता से खेला जाता था। इस काल खंड में मुक्केबाजी, व पशुओं की लड़ाई काफी प्रचिलित थी।
वैदिक काल में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (2500-1000 BC)
प्राचीन भारत के इस काल खंड में आर्य सभ्यता का अत्यधिक प्रमाण मिलता है। आर्य लोग मध्य एशिया से आकर भारत के गंगा तथा सिंधु के मैदानों में बस गए, इनकी कद काठी ऊँची व गौर वर्ण के शक्तिशाली मनुष्य थे। सामान्यतः ये लोग कृषि के जरिये अपना जीवन यापन करते थे तथा भेड़ बकरियां भी पालते थे।
वैदिक काल में ही योग की उत्पत्ति हुई, एवं सूर्यनमस्कार को व्यायाम प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा माना जाता है। शरीर को स्वस्थ व निरोगी रखने के लिए योग आसनों एवं प्राणायामों का अभ्यास अनिवार्य मन जाता था। इस काल में लोग तीरंदाजी, तैराकी, कंदुक-क्रीङा, निशानेबाजी, घुड़सवारी, व रथ दौड़ आदि क्रियाओं में निपुण थे, और इनका उपयोग युद्ध, क्रीङा तथा मनोरंजन हेतु किया करते थे।
इस काल में लोग पासे के खेल में भी पारंगत थे, इस खेल को बूढ़े तथा जवान दोनों ही खेलते थे। शिकार करना भी इस काल में खेल के रूप में प्रचिलित था। नृत्य और संगीत भी इस काल में मनोरंजन का एक माध्यम था। पशुओं एवं पक्षियों की लड़ाई कराना भी इस काल खंड में काफी प्रचिलित था। मेलों एवं उत्सवों पर मनोरंजन के लिए इस प्रकार की लड़ाइयों का आयोजन किया जाता था। शारीरिक बल एवं संस्कृति को वैदिक काल में विशेष स्थान प्राप्त था। शैक्षणिक शिक्षा की अपेक्षा शारीरिक बल को अधिक महत्व दिया जाता था। आध्यात्मिक बल के विकास के लिए योग पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
महाकाव्य काल में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (1000 BC- 600 BC)
इस काल खंड में रामायण और महाभारत जैसी कालजयी महाकाव्यों का सृजन हुआ। इन महाकाव्यों के अध्ययन से पता चलता है कि शारीरिक शिक्षा, सामान्य शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग था। इस काल को उपनिषद् काल से भी सम्बोधित किया जाता है। इस काल में गुरुकुल में गुरु के द्वारा ही समस्त शास्त्रों शिक्षा दी जाती थी। इस काल में कुश्ती, तीरंदाजी, आदि विधाओं का स्तर बहुत ऊँचा था।
पूर्व हिन्दू काल में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (600 BC- 300 AD)
महाकाव्य काल के उपरान्त भी शारीरिक प्रशिक्षण का उल्लेख अभिलेखों में दर्ज है। इस काल दौरान मनुष्यों में नाटकों व उत्सवों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। शिकार खेलना उनका पसंदीदा खेल था, इसे राजसी खेल मन जाता था। खेल के उद्देश्य से ही घरों में कुत्तों को पला जाता था। इस काल में राजाओं द्वारा जलक्रीङा का उल्लेख भी मिलता है। पांसे व शतरंज जैसे खेल भी इस काल में काफी लोकप्रिय थे। पशुओं की लड़ाई भी इस काल में मनोरंजन का एक साधन था। इस काल में शारीरिक बल पर विशेष ध्यान दिया जाता था जिसके परिणाम स्वरुप कुश्ती, गदायुद्ध, घुड़सवारी साथ-साथ तीरंदाजी, तलवारबाजी, भाला प्रक्षेपण एवं जलक्रीङा जैसी शारीरिक क्रियाएं भी अत्यधिक प्रचिलित थी।
इस काल में शारीरिक बल के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था एवं योग आसनों, प्राणायाम व सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास किया जाता था। इस काल में पुरुषों की भाँति महिलाएं भी तीरंदाजी,तलवारबाजी, घुड़सवारी आदि क्रिया कलापों में निपुण थीं।
इस काल में भारत छोटे-छोटे महाजनपदों बटा हुआ था। इस काल में लोहे की खोज हुई एवं अस्त्र शस्त्र का निर्माण लोहे के द्वारा होने लगा। इस काल में बौद्ध धर्म व जैन धर्म का उदय हुआ। बौद्ध धर्म व जैन धर्म दोनों ने अहिंसा व शान्ति पर विशेष ध्यान दिया। इस काल में कई राजदूत अन्य देशों से भारत में आये और यहां की संस्कृति का अध्ययन किया। यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका (INDICA) में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल का सुन्दर उल्लेख किया है कि इस काल में शरीरिक शिक्षा एवं शस्त्र प्रशिक्षण की स्थिति काफी अच्छी थी। मल्लयुद्ध, धावन, भाला प्रक्षेपण, रथ दौड़ आदि शारीरिक गतिविधियां भी इस काल में बहुत प्रचिलित थीं।
इसी काल खंड में सम्राट अशोक के राज्यकाल में शारीरिक शिक्षा का स्तर अत्यंत ही मजबूत था क्योंकि इनकी सेना का शारीरिक बल और क्षमता बहुत ही अच्छा था।
उत्तर हिन्दू काल में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (300 AD- 1200 AD तक)
इस काल के दौरान ही नालंदा व तक्षशिला जैसे महान विश्वविद्यालयों का उदय हुआ था। ये दोनों ही बौद्धिक, शारीरिक एवं सौंदर्यात्मक शिक्षा प्राप्त करने का एकमात्र संसथान थे। कुश्ती, तीरंदाजी,और पर्वतारोहण जैसे खेलों का विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाता था। इस काल दौरान शारीरिक शिक्षा को महान गुप्त शासकों द्वारा विशेष सरंक्षण दिया गया था। लोगों ने भी शासकों द्वारा स्थापित क्रिया कलापों आदर्श माना और उनका अनुसरण करते हुए विभिन्न क्रिया कलापों में प्रतिभाग किया। इस काल के दौरान भारत के पुरुष बलिष्ठ शरीर वाले और बुद्धिशाली हुआ करते थे। मथुरा में प्राप्त कुषाण काल की कलाकृतियों में पुरुषों व शेरों की लड़ाई के दृश्य देखे जा सकते हैं। उड़ीसा के गंगा वंश के शासकों द्वारा भी सेना के शारीरिक बल पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
इसी काल खंड में मौर्य साम्राज्य के उपरांत समुद्र गुप्त द्वारा सम्पूर्ण भारत पर विजय प्राप्त कर ली गई, एवं सम्पूर्ण भारत पुनः एक सूत्र में बांध दिया गया। यह काल स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है। समुद्र गुप्त के पश्चात् उनके पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के द्वारा सम्पूर्ण भारत में शान्तिपूर्वक शासन किया गया। इस दौरान शारीरिक क्रिया कलापों के साथ-साथ विभिन्न ललित कलाओं एवं साहित्य का विकास हुआ। इस काल खंड में बहुत सारे ग्रन्थ लिखे गए। महाकवि कालिदास, भास, रुद्रक,विशाक दत्त, अमर सिंह व वाचयन जैसे प्रकाण्ड विद्वानों ने भारत के साहित्य को उच्चतम शिखर तक पहुँचाया।
इसी काल में नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान था, जहाँ पर लगभग 6 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। विश्वविद्यालय में धार्मिक, वैज्ञानिक, तथा बौद्धिक पाठ्य चर्चाओं के साथ-साथ छात्रों को तैराकी, सांस लेने वाली शारीरिक क्रियाएं एवं योग का नियमित अभ्यास कराया जाता था।
गुप्त वंश के उपरान्त राजपूत काल का उदय हुआ और भारत पुनः कई राज्यों में विभक्त हो गया। इस दौरान चौहान वंश, परमार, तोमर, धाकरे आदि वंशों का उदय हुआ जो अपने कर्तव्यनिष्ठा के लिए काफी प्रसिद्ध थे। इस दौरान हिन्दू धर्म का पुनः उदय हुआ, इस काल को शौर्य काल भी कहा जाता है। इस काल में शारीरिक शिक्षा समस्त राज्य में अनिवार्य था। सेना के साथ-साथ आम नागरिकों को भी शारीरिक क्रियाकलापों एवं अन्य तीरंदाजी, खड़क, भाला प्रक्षेपण आदि में प्रतिभाग करना अनिवार्य था। राजपूत के बच्चों को बचपन से ही कटार व खड़क चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था, एवं शारीरिक बल विकसित करने के लिए बहुत ही कठिन शारीरिक क्रियाएं कराई जाती थी। राजपूतों को अश्वरोहण, भाला प्रक्षेपण, तीरंदाजी, कुश्ती, आखेट, गदा युद्ध आदि खेल काफी प्रिय थे, और साथ ही साथ मनोरंजन के लिए पशु-पक्षियों की लड़ाई भी प्रचिलित थी। धार्मिल मेलों में नृत्य संगीत का आयोजन भी कराया जाता था।
मध्य काल में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (1000 AD-1750 AD)
12वीं सदी में भारत की शारीरिक शिक्षा व्यवस्था को गुरुकुल में हमारे प्राचीन गुरुओं द्वारा विकसित किया गया, जिसे राजाओं और शासकों द्वारा विशेष संरक्षण प्राप्त था।
(गुरुकुल- एक ऐसी संस्था जहाँ पर गुरु व शिष्य एक साथ रहते थे एवं शिक्षण और प्रशिक्षण का कार्य करते थे।)
सन 1200 से 1525 के मध्य राजाओं ने सैनिक प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया जिसके फलस्वरूप आत्मरक्षा के लिए प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के शस्त्र प्रचलन में आये साथ ही साथ विभिन्न प्रकार की शारीरिक मुद्राएं भी विकसित हुईं, जिसके प्रयोग से प्रतिद्वन्दी को परास्त किया जा सकता था। मध्यकाल के विख्यात धार्मिक गुरु श्री समर्थ रामदास स्वामी ने शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को महसूस किया, क्योंकि वे प्रतिदिन कई चक्र सूर्यनमस्कार किया करते थे। उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण किया और लोगों को हनुमान मंदिर व जिमनेजियम स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा किये गए अथक प्रयासों के फलस्वरूप सम्पूर्ण भारत में सैकड़ों जिमनेजियम की स्थापना हुई। इन्हें भारतीय जिमनेजियम आंदोलन का पितामह कहा जाता है।
परम्परागत रूप से शारीरिक शिक्षा की व्यवस्था धार्मिक स्थानों पर ही सृजित हुई, इन संस्थानों में सूर्यनमस्कार, दण्ड, जोड़ी, गदा, खुमाना, कुश्ती, मलखम्भ, तलवारबाजी, आदि शारीरिक क्रियाकलापों का अभ्यास कराया जाता था। उस काल के शासक कई पहलवानों को संरक्षण देते थे तथा खुद भी जिमनेजियम जाने व शारीरिक शारीरिक क्रियाकलापों को करने के शौकीन थे। इस काल में महिलाएं भी शारीरिक क्रियाकलापों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थीं जैसे – तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी, आदि। धीरे-धीरे मुगलों का साम्राज्य भारत पर होने लगा इसके उपरांत हिन्दू राजाओं और मुग़ल शासकों के बीच सत्ता पाने के लिए युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस समय भी शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य युद्ध में शामिल सैनिकों की शारीरिक दक्षता बनाये रखना था।
घुड़सवारी इस काल में भी काफी लोकप्रिय थी। युद्ध के साथ-साथ शिकार एवं मनोरंजन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता था। कुश्ती गाँव में स्वस्थ रहने का एकमात्रसाधन था एवं इस काल में कुश्ती को राजकीय संरक्षण प्राप्त था। चौगान भी इस काल में काफी लोकप्रिय खेल था। मुग़ल शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु भी चौगान खेलते समय हुई थी। इस काल में मुक्केबाजी को भी राजकीय संरक्षण प्राप्त था। प्रतियोगिता के लिए ईरान से अच्छे मुक्केबाजों को बुलाया जाता था।
ग्रामीणों के लिए तैराकी एक लोकप्रिय खेल माना जाता था, साथ ही साथ सैनिकों के लिए भी तैराकी सीखना अनिवार्य था क्योंकि तैराकी युद्ध के दौरान आत्मरक्षा एवं आक्रमण दोनों में सहायता करती थी। इस काल के दौरान शतरंज, चौपड़, पच्चीसी, कबड्डी, गुल्लीडंडा, लपकडंडा, जलक्रीङा, व गोताखोरी भी बहुत प्रचिलित थे।