प्राचीन भारत में शारीरिक शिक्षा (physical education) के बारे में किसी भी प्रकार की साहित्यिक सामग्री उपलब्ध नहीं है। प्राचीन भारत भी, प्राचीन चीन की तरह धार्मिक और भारतीय संस्कृति, व परम्पराओं के काफी निकट था। इनकी जीवन शैली बहुत ही सरल थी।
प्राचीन भारत में शिक्षा का मुख्य केंद्र गुरुकुल था जहाँ पर ऋषि व मनीषी सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान करते थे। गुरुकुलों में शारीरिक क्रियाकलापों पर विशेष ध्यान दिया जाता था। इन क्रिया कलापों में विशेष तौर पर कुश्ती, तीरंदाजी, गदायुद्ध, खड़कयुद्ध,योग, घुड़सवारी, हाथी की सवारी आदि क्रियाकलापों को सिखाया व अभ्यास कराया जाता था, साथ ही साथ उन्हें धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों के बारे में भी बताया जाता था। प्राचीन भारत में समस्त क्रिया कलाप खुले मैदानों में कराया जाता था उस समय किसी भी प्रकार की जरुरत नहीं होती थी, अगर होती भी थी तो वो नाम मात्र की जैसे- जोड़ी, गदा, खड़क,धनुष व तीर आदि।
प्राचीन भारत में शारीरिक शिक्षा जीवन का एक अभिन्न अंग था इसे व्यवसायिक धंधा नहीं माना जाता था। जैसा कि उपनिषदों में वर्णित है- “आध्यात्मिक शक्ति के लिए शारीरिक शक्ति अति आवश्यक है।”
प्राचीन काल में बौद्ध काल में भगवान बुद्ध द्वारा खेलों, मनोरंजन, व व्यायाम की मनाही के बावजूद इस तरह की गतिविधियाँ पूरी तरह से बंद नहीं हुई थी। भगवान बुद्ध का मानना कि इस प्रकार की गतिविधियों से मनुष्य में मानसिक स्थिरता नहीं आती है। बुद्ध ने हमेशा आध्यात्मिक व अहिंसात्मक क्रियाकलापों पर विशेष जोर दिया था।
भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) के इतिहास का विभाजन
भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) के इतिहास के विकास का अध्ययन करने के लिए हमें प्राचीन काल से आज तक की शारीरिक शिक्षा के विकास का अध्ययन करना होगा। भारत में शिक्षा व शारीरिक शिक्षा का इतिहास लिखित रूप में उपलब्ध नहीं है, क्योंकि प्राचीन भारत में, चीनियों, यूनानियों व अरबों की भाँति इतिहासकार नहीं थे। हमारा प्राचीन इतिहास लोक कथाओं, पुरानी गाथाओं तथा मौखिक व्याख्यानों पर आधारित है।
शारीरिक शिक्षा का अध्ययन करने के लिए हम इसे तीन कालों में विभाजित कर सकते हैं –
- प्राचीन भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास
- ब्रिटिश भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास
- आधुनिक भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास
प्राचीन भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास-
प्राचीन भारत लगभग 3000 BC तक एक नगरीय सभ्यता के रूप में विकसित हो चुका था जिसका स्पष्ट प्रमाण हमें हड़प्पा तथा मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिलता है। इस काल में बड़े बड़े व्यायामशाला थे जहाँ पर लोग सामूहिक रूप से व्यायाम करते थे तथा स्वयं को स्वस्थ रखते थे, साथ ही बड़े बड़े स्नान गृह थे जहाँ पर नागरिक स्नान किया करते थे। इस काल में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था की गये थी। इस काल नागरिक स्वच्छता के प्रति काफी सजग रहते थे। प्राचीन काल के भारत में शारीरिक शिक्षा के इतिहास को हम निम्नलिखित कालखंडों में विभाजित कर सकते हैं –
प्राचीन भारत का विभाजन-
- सिंधु घाटी सभ्यता (3250-2500 BC)
- वैदिक काल (2500-1000)
- महाकाव्य काल (1000-600 BC)
- पूर्व हिन्दू काल (600 BC से 300 AD)
- उत्तर हिन्दू काल (300 AD- 1200 AD तक)
- मध्य काल (1000 AD- 1750 AD)
ब्रिटिश भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (1750- 1947)
1825 AD के बाद शिक्षांकि स्थिति दयनीय थी। अंग्रेजों को खेल रूचि थी लेकिन स्कूलों में शिक्षा को उचित प्रकार से क्रियान्वित गया गया। इस काल भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव आने लगा था, जिसके फलस्वरूप युवाओं में स्वदेशी क्रिया कलापों के प्रति उदासीनता आने लगी थी और वे स्वदेशी व्यायामशालाओं से दूर होते गए। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
विदेशी क्रिया कलाप स्वदेशी क्रिया कलापों की अपेक्षा अधिक आकर्षक और मनोरंजनात्मक थे। पश्चिमी कलाप सामूहिक होते थे और इसमें एक साथ अधिक संख्या में लोग हिस्सा ले सकते थे। एवं किसी खास दक्षता की आवश्यकता नहीं थी जबकि स्वदेशी क्रिया कलाप समूह में नहीं सकते थे। स्वदेशी क्रिया स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल भी नहीं किया गया था।
भारत में विभिन्न विदेशी शासकों का शासन रहा और सभी ने अपने कार्यक्रमों को लागू किया जिसके फलस्वरूप भारतीय शारीरिक क्रिया कलाप का स्वरुप बिगड़ गया। जैसे मुस्लिम काल में विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रशिक्षण केवल सैनिकों तक ही सीमित थे, आम जन को इस प्रकार के प्रशिक्षण पर रोक थी। इसी प्रकार की व्यवस्था पुर्तगाली और फ़्रांसिसी शासन के दौरान भी थी। ब्रिटिश शासन भारत में काफी लम्बे समय तक रहा और इस दौरान स्वदेशी क्रिया कलाप का महत्व बिल्कुल ही समाप्त हो गया। आर्म एक्ट लागू होने के उपरान्त भारतियों को युद्ध शस्त्र लेकर चलने पर रोक लगा दी गई एवं भारतीय स्वदेशी क्रिया कलाप जैसे – तलवार बाजी, छुरेबाजी आदि क्रिया कलापों पर रोक लगा दी गई। जिसके फलस्वरूप भारतीयों की शारीरिक दक्षता धीरे-धीरे कम होने लगी। ब्रिटिश शासन के दौरान सभी प्रकार के खेल-कूद गतिविधियों का आयोजन निजी प्रयासों के जाइये ही संपन्न होता था।
आधुनिक भारत में शारीरिक शिक्षा (Physical Education) का इतिहास (1947- आज तक)
1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में नई नीतियाँ लागू की गईं, एवं शारीरिक शिक्षा और मनोरंजन के विकास के लिए भी कई प्रकार की योजनाएं भारत सरकार द्वारा शुरू की गईं। शिक्षा को और विस्तृत रूप देने के लिए नए-नए विद्यालय एवं महाविद्यालय खोले गए, एवं बिना किसी भेदभाव के 14 वर्ष तक के बालक बालिकाओं के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण कार्य हुए।
1948 के लन्दन ओलम्पिक में पहली बार भारतीय तिरंगा फहराया गया। भारतीय पार्लियामेंट एक्ट के अनुसार 1948 में राष्ट्रिय कैडेट कोर की स्थापना की गई जिसका श्रेय पंडित हृदयनाथ कुंजरू को जाता है।
शारीरिक शिक्षा के विकास के लिए 1948 में ताराचन्द कमेटी का गठन हुआ, एवं ताराचन्द कमेटी के सुझाव पर ही 1957 में लक्ष्मीबाई शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय की स्थापना ग्वालियर मध्य प्रदेश में की गई।
शारीरिक शिक्षा मनोरंजन की केंद्रीय परामर्श बोर्ड का गठन 1950 में किया गया। इस बोर्ड के नामित सदस्य इस प्रकार थे-
- सभी राज्यों से एक-एक सदस्य
- भारत सरकार द्वारा मनोनित शारीरिक शिक्षा के विशेषज्ञ
- भारत सरकार द्वारा मनोनित शिक्षा मंत्रालय से अध्यक्ष एवं इसी मंत्रालय से सचिव।
शारीरिक शिक्षा एवं मनोरंजन की केंद्रीय परामर्श बोर्ड के प्रथम अध्य्क्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद (तत्कालीन भारत सरकार के शिक्षा मंत्री) थे। इस बोर्ड का मुख्य उद्देश्य , केंद्र सरकार को शारीरिक शिक्षा, खेलों, मनोरंजन, तथा युवा वर्ग के विकास के लिए कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का सुझाव देना था। इसी बोर्ड द्वारा 1966-1967 में राष्टीय स्वस्थता कोर के कार्यक्रमों को भारत सरकार के समस्त विद्यालयों एवं शारीरिक शिक्षा संस्थानों में लागू किया गया।
7 नवंबर 1950 में स्काउट एवं गाइड को एक साथ सम्मिलित किया गया और इस संयुक्त संस्था को The Bharat Scouts & Guides नाम दिया गया। इसकी स्थापना में राष्टीय नेता प्रथम प्रधानमन्त्री- पंडित जवाहर लाल नेहरू, प्रथम शिक्षा मंत्री- मौलाना अबुल कलाम आजाद, प्रान्त के गवर्नर- श्री मंगलदास पक वासा, स्काउट लीडर- पंडित हृदयनाथ कुंजरू, पंडित श्रीराम बाजपई, जस्टिस वी. सी. एन बोस आदि अपना योगदान दिया। द भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (The Bharat Scouts & Guides) का मुख्यालय लक्ष्मी मजूमदार भवन, 16 महात्मागाँधी मार्ग, इंद्रप्रस्थ स्टेट, नई दिल्ली में स्थित है।
प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन 1951 में नई दिल्ली में किया गया था। 1952-53 में Secondary Education Commission की स्थापना की गई थी। 1953 में राजकुमारी अमृत कौर कोचिंग स्कीम प्रारम्भ किया गया था। अमृत कौर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री थीं और टेनिस की अच्छी खिलाडी भी थीं। इस स्कीम के अंतर्गत अच्छे खिलाडियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। इस स्कीम में मेजर ध्यानचंद जी ने भी अपनी सेवाएं दी थी। 1961 में इस स्कीम को बंद कर दिया गया और इसे राष्टीय खेल संसथान, पटियाला (NIS- National Institute of Sports, Patiala, Punjab) में मिला दिया गया।
भारत सरकार के रिहैबिलेटेशन मंत्रालय द्वारा जनरल जे. के. भोसले की अध्यक्षता में National Discipline Scheme की शुरुआत 1954 में की गई थी। इस स्कीम की नींव 24 जुलाई 1954 में कस्तूरबा निकेतन, लाजपत नगर नई दिल्ली में राखी गई थी।
1965 में कुंजरू समिति के सुझावों पर नेशनल डिसिप्लिन स्कीम को ऑक्सिलरी कैडेट कोर एवं शारीरिक शिक्षा में मिला दिया गया, तथा इसे संयुक्त रूप से राष्टीय स्वास्थता कोर का नाम दिया गया।