प्राचीन ओलम्पिक खेल

प्रथम ओलम्पिक खेल का लिखित रूप 776 ईसापूर्व में पाया गया जो हर चार साल के बाद आयोजित किये जाते थे। यूनानियों को खेलों से बहुत लगाव था और वे इन्हें अपने धर्म का एक हिस्सा मानते थे। ओलम्पिया में ओलम्पिक खेल महीनों चलते थे जिसमे हजारों लोग एकत्रित होकर खेलों का आनंद लेते थे।

प्राचीन ओलम्पिक खेलों का महत्त्व

विश्व को खेल से साक्षात्कार करने में यूनान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐसा कहा जाता है कि यूनान केवल दर्शन और विज्ञानं ही नहीं बल्कि खेलों में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जब भी हम सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, होमर, आदि महान विभूतियों की बात करते हैं तो हमारे सामने यूनान की समृद्धिशाली चित्र हमारे सामने आ जाती है, जो आज से हजारों साल पहले थी। विकास के उस प्रारंभिक काल में ही यूनान ने शारीरिक विकास और बल पर विशेष बल दिया ताकि शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से मनुष्य का विकास हो सके। खेलकूद के इतिहास में ओलम्पिक का बहुत ही मत्वपूर्ण स्थान है, यह विश्व की सबसे बड़ी प्रतियोगिता है। ओलम्पिक के इतिहास के सम्बन्ध में कई किवदंतियां हैं, कुछ के अनुसार प्रथम ओलम्पिक खेल का आयोजन हरक्यूलिस के प्रयासों से 1253 ईसापूर्व हुआ था, परन्तु उपलब्ध साक्ष्य इसके विपरीत हैं। उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार 884 ईसापूर्व में ओलम्पिक खेलों का आयोजन हुआ था। इतिहास और ऐतिहासिक साक्ष्यों के विपरीत सबसे अधिक प्रामाणिक तथ्य यह है की प्राचीन ओलम्पिक खेल का आयोजन 776 ईसापूर्व में यूनान के ओलम्पिया नामक स्थान, एलीस नगर में हुआ था। यह स्थान अल्टीस घाटी से घिरा हुआ था, जिसके कारण खेल का नाम ओलम्पिक पड़ा।

प्राचीन ओलम्पिक खेल के नियम-

  • ओलम्पिक खेल केवल पुरुषों के लिए आयोजित होते थे, महिलाएं इसमें प्रतिभाग नहीं कर सकती थीं और न  ही इसे देख सकती थी।
  • प्रतिभागी जन्म से यूनानी होना चाहिए।
  • एमच्योर को परिभाग करने की इजाजत थी।
  • ओलम्पिक प्रतियोगिता से पूर्व काम से काम १० माह तक प्रशिक्षण लिया हो।
  • अंतिम एक माह ओलम्पिक खेलों के आधिकारिक निर्णायकों की देखरेख में बिताया हो।

ओलम्पिक खेलों का संचालन –

शपथ ग्रहण समारोह

ओलम्पिक खेलों के प्रारम्भ होने से पूर्व सभी प्रतिभागी, प्रतिभागी के प्रशिक्षक, प्रतिभागी के पिता, भाई, जीयस के मंदिर में शपथ लेते थे, कि वे किसी भी प्रकार का गलत साधन का प्रयोग विजय पाने के लिए नहीं करेंगे।

निर्णायक भी शपथ लेते थे, कि वे निर्णय देते समय ईमानदारी व निष्पक्षता रखेंगे।

बलि समारोह

खेल प्रारम्भ होने से पूर्व यूनान के देवता जीयस को एक सूअर की बलि दी जाती थी.

मार्च पास्ट

प्रतियोगिता प्रारम्भ से पूर्व मार्च पास्ट होता था जिसमें  बिगुल वादक, सभी खिलाडी,और अधिकारी भाग लेते थे। मार्च पास्ट के दौरान जैसे ही खिलाडी उद्धघोषक / कॉमेंटेटर व दर्शकों के सामने से गुजरता था तो उद्धघोषक उस प्रतिभागी का नाम, उसके पिता का नाम और उसके शहर का नाम लेता था, और दर्शकों से पूछता था कि किसी को कोई आपत्ति है। दर्शकों की चुप्पी ही प्रतिभागी के लिए अनापत्ति प्रमाण मान लिया जाता था।

उद्धघाटन समारोह

उद्धघोषक ही खेलों के उद्धघाटन की घोषणा या उद्धघोष करता था। निर्णायक मंडल का मुखिया और कुछ विशिष्ट हस्तियां प्रतिभागियों को सम्बोधित करती थीं, इसके बाद प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती थी।  पवित्र अग्नि बिना किसी व्यवधान के ज्यूस देवता के सम्मान में जलती रहती थी।

स्पर्धाएं-

प्राचीन ओलम्पिक खेलों में दौड़ ही केवल एकमात्र स्पर्धा होती थी और एक ही दिन में संपन्न हो जाती थी।  बाद में पैदल दौड़, सद्भावना दौड़, पेंटाथलॉन (दौड़, लम्बी कूद, चक्का फेंक, जेवलिन थ्रो, और कुश्ती), मुक्केबाजी आदि स्पर्धाओं को भी शामिल कर लिया गया।  अधिक स्पर्धा होने के कारण इन खेलों की अवधि को एक दिन से बढाकर पांच दिन कर दिया गया।

  • ओलम्पिक के पहले दिन धार्मिक बलि  और शपथ ग्रहण समारोह आयोजित होती थी, इस दिन कोई भी स्पर्धा आयोजित नहीं की जाती थी।
  • दूसरे दिन  मार्च पास्ट होता था।  जिसमे खिलाडियों का दर्शकों से परिचय कराया जाता था, और खेलों का उद्घाटन किया जाता था।  सबसे पहले सद्भावना दौड़, घुड़दौड़, और पेंटाथलॉन आदि स्पर्धाएं होती थीं।
  • तीसरे दिन प्रातः आधिकारिक रूप से यूनानी देवता को १०० गाय-बैलों की बलि दी जाती थी। दोपहर के बाद लड़कों के लिए पैदल दौड़, कुश्ती, और मुक्केबाजी की प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी।
  • चौथा दिन मुख्य एथलेटिक खेलों (पुरुषों) के लिए सुरक्षित रखा जाता था जिसमे पैदल दौड़, कुश्ती, आदि प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं। कार्यक्रम के अंत में बख्तरबंद दौड़ आयोजित होती थी।
  • पांचवें और अंतिम दिन को पर्व व् उल्लास के रूप में मनाया जाता था।

पुरस्कार-

ओलम्पिक विजेता को उस समय बहुत सम्मान दिया जाता था।  यह  माना जाता है कि सातवें ओलम्पिक खेलों  विजेता को तिपाई व अन्य कीमती सामान देकर सम्मानित किया जाता था। बाद में ज्यूस में मंदिर में लगे पवित्र जैतून के वृक्ष के पत्ते तोड़कर पुरस्कार के रूप में दिया जाने लगा।  कवि विजेताओं के नाम को अपनी कविताओं में और कलाकार पत्थरों पर अक्काशी कर उनका  अमर कर देते थे। विजेता प्रतिभागी को उसके साथी उसके घर एक विजयी जुलूस निकाल कर छोड़ते थे  इन विजेताओं को कुछ तोहफे और विशेष अधिकार मिलते  थे। उस समय इन्हें शहर के साधारण गेटों से नहीं बल्कि उनके स्वागत के लिए विशेष गेट बनाकर शहर में लाया जाता था। ओलम्पिक विजेता होना यूनान का सबसे बड़ा सम्मान मन जाता था।

प्राचीन ओलम्पिक खेलों का पतन व अवसान-

प्राचीन ओलम्पिक खेलों का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण था जो कि 12 शताब्दियों तक चला, इस दौरान 293 ओलम्पिक खेलों का सफल आयोजनहुआ। 394 ईस्वी में यूनान पर रोम का अधिकार होते ही रोमन सम्राट थिओडोसिअस ने ओलम्पिक खेलों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जब यूनान रोमन के अधीन हो गया तब खेलों ने अपनी वास्तविक गरिमा, महत्त्व, और स्वीकारोक्ति खो दिया और भ्रष्टाचार दलदल में फास गया। इस प्रकार प्राचीन ओलम्पिक खेलों का पतन हो गया।

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